Every time despair drives one to write India off, it surprises you. Students lead the way once again but the way others have rallied around them is special. Even public figures, from cinema, sports etc, who are at the risk of being targeted have come forward. More power to them = more hope for us. This is to thank all those who are out there on the streets….
ठहरे हुए पानी में लहर देख रहा हूँ
अब मैं उम्मीद की सहर देख रहा हूँ
माना ये रात अभी लम्बी है मगर
पस-ए-माहताब महर देख रहा हूँ
ताज़ा ओस की कुछ बूँदों को
काटते पुराना ज़हर देख रहा हूँ
नहीं बाँध सकेंगीं मुँडेरें तुम्हारी
हर बूँद में पूरा बहर देख रहा हूँ
अश्कों से धुली जवान आँखों में
जो ज़िद गयी है ठहर देख रहा हूँ
आज तो तुर्श-रू दिल भी कहता है
बदलेगा वक़्त वो पहर देख रहा हूँ
लगने लगा अपना अरसे के बाद
एक साथ खड़ा शहर देख रहा हूँ
(सहर= morning; पस-ए-माहताब महर= sun behind the moon; बहर= ocean; तुर्श-रू= cynical)