आज धर्म पूछोगे, कल जात पूछोगे
कितने तरीक़ों से मेरी औक़ात पूछोगे
मैं हर बार कह दूँगा, यही वतन तो मेरा है
घुमा फिरा के तुम भी तो वही बात पूछोगे
सच थोड़े ही बदलेगा पूछने के सलीकों से
थमा के क़ुरान या फिर जमा के लात पूछोगे
मेरी नीयत को तो तुम कपड़ों से समझते हो
लहू का रंग भी क्या अब मेरे हज़रात पूछोगे
मैं यहीं था 84 में, 93 में, 02 में, 13 में
किस किस ने बचाया मुझे उस रात पूछोगे
तुम्हीं थे वो भीड़ जिसने घर मेरा जलाया था
अब तुम्हीं मुझसे क़िस्सा-ए-वारदात पूछोगे
ज़बान जब भी खुलती है ज़हर ही उगलती है
और बिगड़ जाएँगे ग़र तुम मेरे हालात पूछोगे
पुरखों की क़ब्रें, स्कूल की यादें, इश्क़ के वादे
कुछ देखोगे सुनोगे या सिर्फ़ काग़ज़ात पूछोगे
Originally published on Twitter.
(Visited 206 times, 1 visits today)
very nice article